चीन की सीमा पर और लड़ाकू विमानों की होगी तैनाती

चीन के खिलाफ वर्ष 1962 की जंग में मिली शिकस्त से सबक लेते हुए भारत ने अपनी पूर्वोत्तर सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाना शुरू कर दिया है. वायु सेना प्रमुख एनएके ब्राउन ने जोर देकर कहा, ‘यदि 1962 के युद्ध में वायुसेना ने आक्रामक भूमिका निभाई होती तो इसका परिणाम कुछ दूसरा ही देखने को मिलता. भविष्य में वायु सेना अग्रणी भूमिका में होगी.’ 





उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में भारत-चीन युद्ध को 50 वर्ष पूरे हुए हो चुके हैं। 1962 के युद्ध के दौरान आईएएफ के विमानों को मुख्यत: परिवहन के तौर पर ही इस्तेमाल किया गया था. एयर चीफ मार्शल ब्राउन ने कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि भविष्य में ऐसी कोई सीमित भूमिका नहीं होगी. वायु सेना आगे से हर क्षेत्र में हर काम के लिए अग्रणी भूमिका में होगी.’ 


उन्होंने कहा कि कि भविष्य के लिहाज से वायुसेना अब पूर्वोत्तर में पहले की तुलना में अधिक मजबूत स्थिति में है. पूर्वी क्षेत्र में दो और सुखोई स्क्वाड्रनों को तैनात करने की
तैयारी है.


गौरतलब है कि इस समय दो सुखोई स्क्वाड्रन तेजपुर और चबाबुआ ((दोनों असम)) में तैनात हैं.
वायु सेना प्रमुख ने बताया, ‘हम सुखोई के चार और स्क्वाड्रनों की तैनाती करने जा रहे हैं, इनमें से दो स्क्वाड्रन पूर्वी क्षेत्र में तैनात किए जाएंगे.





इस तैनाती से ज्यादा कुछ नहीं तो चीन के आक्रामक वक्तव्यों पर इससे एक हलके से प्रतिरोध की आशा तो की ही जा सकती है.
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